दर्पण को रोज देखती हूँ तुम समझकर तुम भी दर्पण को देखो हम समझकर दर्पण को चूम रही तुम समझकर तुम भी दर्पण को चूमों न हम समझकर इजहारे मोहब्बत पास ना सही तो दूर से ही सही मोहब्बत तो है हमको आपसे आपको हमसे! कुमारी अर्चना"बिट्टू"
No comments:
Post a Comment