Monday 2 April 2018

"पंचाली का ये कैसा कौमर्य"

क्यों पाँच पतियों की होकर भी
द्रौपदी नारी नहीं कन्या ही थी
हिंदू धर्मेग्रंथों पर बड़ा सवाल उठाती
जब एक स्त्री एक पुरूष से
संबंध बना कौमर्य खो देती है
फिर कैसे द्रौपदी कौमर्य भंग ना हुआ!
श्लोक में इनपात्रों अहिल्या,द्रोपदी,
कुन्ती,तारा,मन्दोदरी तथा
पंचकन्या स्वरानित्यम महापातक
नाशक कहा गया प्रात:काल
इनका नाम स्मरण करना चाहिए!
अर्जन ने मछली की आँख में
निशान साधकर स्वयंवर तो जीत लिया
पर द्रोपदी का दिल ना जीत सके
कुंती ने बिन देखे पाँच पाण्डवों में
द्रौपदी को वस्तु समझ बाँट दी
पर पाँचों के ह्रदय में द्रोपदी ना समां सकी
विवाह उपरांत पंचाली कहलायी
पर कभी सम्मान ना पा सकी
आज भी खिल्ली उड़ाई जाती है
स्वच्छंद औरतों को द्रोपदी कहकर!
व्यासजी ने दिया था आशीर्वाद
द्रौपदी एक एक वर्ष सभी
पाण्डवों के साथ रहेंगे
जब वह एक भाई से संबंध बना
जब दूसरे भाई के पास जाएगी
उसका कौमर्य पुन: वापस लौट आएगा
अन्य चार भाई नज़र उठा कर
तब पंचाली को नहीं देखेंगे पर
ये शर्त अर्जुन को रास न आई
वो पति रूप में सदा असहज बने रहे!
सभी अपने काम वासना को
नियंत्रित ना कर सके सबने
अलग-अलग स्त्रियों से संबंध बनाए
धर्मराज युधिष्ठिर ने देविका से
बलशाली भीम हिडिम्बा से
धनुर्धर अर्जन ने सुभद्रा,
उलपी और चित्रांगदा से
अश्विनी जुड़वा पुत्रों नकुल ने
जरासंध की पुत्री से और
सहदेव ने विजया से
दौपदी पांच पतियोंवाली होकर
ताउम्र प्रेम के लिए तरसती रही
सबकी शारीरिक इच्छाएं पूरी कर भी
स्वंय मांनसिक रूप सेअतृप्त रही!
ये द्रौपदी का कैसा शिव का वरदान था
एक पुरूष में सारी गुण ना हो सकते थे
तो पाँच पति रूप में पाण्डव दे डालें
इससे तो भली एक समान्य नारी है
जो एक पतिव्रधारी रहकर भी
जीवन सारे आनंद को पाती है!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
२/४/१८

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