"ऐ चिरैइया दाना चुगले"
ऐ चिरैइया दाना चुगले दाना छत पर डाल रही थोड़ा अपनी पेट में डाल लें और थोड़ा अपनी चोंच में! क्योंकि सुबह से ही होंगे भूखे प्यासे तेरे नन्हें से बच्चे घोंसले में जोह रहे होंगे अभी तक वे बाट तेरी ही दो धूँट पानी भी पी लें जो रखा है कास्य के बर्तन में ! फिर उड़ना तू अनंत आकाश छोड़कर धूल भरी तपती धरती और बच जाना गर्म लू से कल फिर आना चुंगने दाना फुदकते हुए मेरे ही छत पर..! कुमारी अर्चना पूर्णियाँ,बिहार मौलिक रचना ३/४/१८
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