मौत तू कब आ रही
मुझसे और इंतजार नहीं होता
तू दूर से डराती है
कभी पास तो आ
फिर देख कैसे हम दोनों दोस्त बनते हैं
क्योंकि मैं तेरे आश में हूँ तू मेरे!
मैं तुझे देखना चाहती हूँ
आखिर तू कैसी है
तुझे महसुस करना चाहती हूँ
तुझसे बातें करना चाहती हूँ
तुझे छुना चाहती हूँ सुना है कि
तू मरने वाले को केवल दिखती है
कोई और तेरा सटीक वर्णन
नहीं कर सकता तुझसे मिलकर ही
मैं तुझे सही सही जान पाउँगी और तू मुझे!
मैं इस दुनिया को छोड़
तुझे गले लगा लेना चाहता हूँ
क्योंकि तू शास्वत सत्य है
बाकी सब मिथ्या है!
मौत तू कब आ रही
मुझसे और इंतजार नहीं होता!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
29/12/18
Tuesday, 24 April 2018
"मौत तू कब आ रही"
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