Thursday 26 April 2018

"कतरन सी हो गई हूँ मैं"

कागज की कतरन सी हो गई हूँ
जो कल तक तुम्हारे पहरन में थी!
बांसी सी हो गई हूँ मैं
कल तक ताज़ी थी तुम्हारे लिए
आज बुढ़िया सी हो गई हूँ!
घर का पुराना समान सी हो गई हूँ मैं
जो कल तक नयी थी तुम्हारे लिए
बंद कोठरी में पड़े पड़े धूल
कब्र सी बन गई हूँ!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
©मौलिक रचना
३०/४/१८

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