किसी के सच्चे इश्क की याद है तू
मोहब्ब़त पर लिखी इबारत है तू!
किसी प्रेमी की प्रेमिका के लिए इबादत है तू सुना है सच्चे प्रेमियों का खुदा भी है तू!
ताज कब्रगाह नहीं तू दो बूतों की
अल्लाह के दूत है बसते यहाँ!
मैं भी प्रेमी हूँ किसी के प्यार की
मेरी उससे मिलन की भी दुआ तू सुन लें!
उससे पहले की मैं फ़ना हो जाउँ!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना©
११/५/१८
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