घर का चुला चौका करना व
गौबरपाथना ही
उसका अब नशीब है
गरीब होने का
कुछ तो प्रसाद मिले !
जबानी आई गई ललिया पर
वो तो
एक ना दिन आनी थी
बापू ने दहेज में
लड़को वालों को
भैसियाँ गंछी
ललिया के माँ बापू ने दुसरों के खेत में
मेहनत मंजूरी जी तोड़ की
फिर भी
भैसिया नाही दे पाये !
ललिया रात दिन ससुरालवालों की
सेवा खातिरदारी करती रहती
गौउँ
माल जाल के सेवा भी
फिर भी तानों से
ना बच पाती
एक तो काली कुलौठी ठिगनी सी
ऊपर से खाली हाथ आई
तो
मान सम्मान कहाँ से पावें !
रात सास ने ललिया के खाने में
केंचुली पीस कर मिला दिया
बड़े प्यार से ठूस ठूस खिला दिया
सुबह ललिया की अर्थी उठी
उसने खुद ऐसा वैसा खा लिया !
बरसात का मौसम था लकड़ी तो
मिली पर भींगल थी
वही गौबर की
चिपरी से गोबरपथनी जली
फ़न फ़न फ़न..!
दहेज दानव आँख फाड़े खड़े थे
धड़ियाली आँसूों में
पर खूऩ से रंगल थे
उनके हाथ
पुलिस वालों ने
आत्महत्या का केस बना
मामले को रफा दफ़ा किया
गोबरपथनी की आत्मा आज भी
इन्हीं गोबरों की डेरी में भटकती है
न्याय के लिए !
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
9/1/19
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