Thursday 19 April 2018

"सुहानी शाम"


सुहानी शाम है बलम रात ढले
तुम मेरी छप की मुँडेरा पर आ जाना
वही पलकें बिछायें मैं मिलूँगी!
तुम्हारे कदमों की आने की आहट से ही
मेरे बदन में सिहरण सी मची है
मेरे रोम रोम पुल्कित है!
तुम्हारे अप्रियम सौन्दर्य को देख
आज चाँद को भी लज्जा आ गई
और मैं अपना मुख आँचल से ढक
तेरा ही रूप निहारूँ!
और मन में मंद मंद मुसकाउँ
मेरा बलम चाँद से भी सुन्दर है
क्योंकि चाँद में दाग है
मेरा बलम बेदाग है!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१९/४/१८

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