ये माओ के अवशेष
खेल रहे नित खूऩी खेल
कहते लाल सलाम है
भाई ये कैसा दुआ सलाम है
जो अपने भाई बंधु को मारे
नक्सलवाद के नाम पर!
शय्य दे रहे कभी तो सफेदपोश
अपने गद्दी को पाने के लिए
आंतक का खुलेआम करवा रहे
ऐ.सी के कमरे में बैठ तमाशा देखते
जनता बाहर दाने को तरसती है!
ये गद्दार धोखा से पीठ पीछे
करते रहते है सदा ही वार
ग़र भारत माँ के सच्चे लाल हो तो
आओ सामने से सीना तान
मैदान में करते हैं दो दो हाथ
देखते किसके बाजूओं में दम है!
तो कभी भोली भाली जनता को
ये बहला और फुसला ढाल बना रहे
तो कभी युवाओं को देशद्रेही
प्रशासन और जनता का जीना दुश्वार
सुकमा की धरती लहू से लहूलुहान हुई
छब्बीस जवानों का लहूँ
इन्साफ के लिए पुकार रहा
आगे भी माँ के लाल ना डरकर
देश के लिए प्राण कुबान करेंगें!
कुमारी अर्चना
मौलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार
९/४/१८
Monday, 9 April 2018
"ये माओ के अवशेष है"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment