तुझपे शीश न्यौछावर करता हूँ
जब गया मैं जंगे आजादी पर
दुश्मनों से लड़ने व मरने।
गोली लगी पर भेद ना सकी
मेरा छत्तीस इंच का सीना!
पर धोखे से अपनों ने जब चीर दिया
मेरा सीना!
कभी मुड़भेड़ में कश्मीरियों के पत्थरों से
मरा
तो कभी सुकमा में नक्सलियों से
तो कभी घटिया भोजन खा के
तो कभी ठंड में बिना जूतों व गर्म कपड़ों के
तो कभी उन्नत अस्त्रों के अभाव में
तो कभी बड़े नेताओं की मेहरबानियों से
तो कभी बड़े अधिकारियों के
आदेश अवहेलना से
कभी परिवार की जुदाई में मरा
पर आत्मा तो मेरी रोज मरती है
जब मिलती अपमान व गालियाँ अपने ही देशवासियों से... हे!
भारत माता तुझ पे
शीश न्यौछावर करता हूँ !
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१०/५/१८
Thursday, 26 April 2018
"हे!भारत माता"
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