ना मैं हिंदु हूँ
ना मैं मुस्लिम हूँ
मैं केवल पशु हूँ!
बेजुब़ान हूँ ग़र जुवाँ होती तो
तुमको बतालाती मैं क्या चाहती हूँ!
मैं भी जीव हूँ मुझे भी जीने दो
मुझे भी प्रेम करने दो
मुझे भी अपनी पीढ़ी को
अगली पीढ़ी ले जाने दो
वरन् मैं भी नीलव्हेल,पाड़ा,तेंदुआ,
बाघ व गौरया,उल्लू जैसे हो जाउँगी
मैं केवल मादा हूँ जैसे
स्त्री व अन्य जीव है
संतति करना मेरी जीवन प्रक्रिया का अंग है!
ना मैं कोई देवी हूँ
ना ही माता पिता हूँ
मैं केवल पशु हूँ
स्त्री जैसे अपनी संतान को
स्तनपान कराती हूँ वैसे मैं भी!
परन्तु बकरी,भेड़,बंदरिया व कंगारूँ जैसे
जाने कितनी मादयें है जो स्तनपान करती है
तो क्या वो माता नहीं है!
और जो मादा पशु व पक्षी
स्तनपान नहीं करा पाती फिर भी
अपने संतानो की रक्षा व देखभाल करती है
तो क्या वो माता नहीं है!
धरा पे मनुष्य को खाने योग्य
असंख्यों वस्तु है पर
मैं क्यों दूधारूँ पशुओं मैं
एक हूँ प्रोटीन का बड़ा श्रोत हूँ
फिर भी मेरा संरक्षण क्यों
नहीं करते अज्ञानी मानव!
मुझे धर्म व जाति में ना बाँटो
जैसे तुमने इंसान को बाँटा है
हिंदू ,मुस्लिम,सिख व ईसाई
बाह्मण,राजपूत,वैश्य व छुद्र!
इसलिए ना मैं हिंदू हूँ ना मैं मुस्लिम हूँ
मैं केवल पशु हूँ
मुझे पशु ही रहने दो
इन्सान मत बनाओ!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना ©
29/12/18
Thursday 26 April 2018
"गईया कुछ कह रही"
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