मैं दर्द में हूँ
इसलिए किसी और के दर्द का
एहसास भी जाता रहा है!
किसी को दर्द क्या बयाँ करूँ
दर्द शरीर के रक्त में घुल कर
जिंदगी बन चुका है!
इसलिए दूसरों का दर्द भी
अब मेरा दर्द बन चुका है!
कली हो या पुष्प टहनी हो
या पेड़ पशु हो या पक्षी
आदमी हो या औरत
कीड़े हो या मकौड़े
जीव हो या निर्जीव
किसी को दर्द में देख के
अश्रु की अविरल धारा
बाहर आ जाती
मुझे सागर में डूबों जाती!
जाने कब तक डूबोती रहेगी
मैं ऊपर नीचे डूबकियाँ लगाती रहूँगी
खुदको और दूसरों को दर्द से
कभी निज़ात दिया पाऊँगी
या मैं भी दर्द बन जाऊँगी
अंतहीन सी!
कुमारी अर्चना
पूर्णिया,बिहार
मौलिक रचना
३/४/१८
Tuesday, 3 April 2018
"मैं दर्द में हूँ"
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