मैं झरना चाहती हूँ झड़ रहे पत्ते झड़ रहे फूल झड़ रहे फल झड़ रहे पर्वत झड़ रहे पहाड़ झड़ रहे चट्टान झड़ रही धारा मैं भी झरना चाहती हूँ तुम पर सदा के लिए तुम्हारी बनी रहने के लिए... कुमारी अर्चना पूर्णियाँ,बिहार २१/४/१८
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