मेरे हिस्से में रात आई
रात का रंग काला है
इसमें कोई दूजा रंग नहीं मिला
इसलिए सदा सच्चा है
मेरी ज़िन्दगी भी अकेली है
कोई दूजा ना मिला!
फिर दिन का हिस्सा
सफेद रंग का है
जो दूजे रंग से मिल बना
झूठा सा दिखता है
फिर भी जीवन में विविध रंगों को
भरता है वो कहाँ गया जो
मेरे दिल को भाता था
शायद गुम हो गया
रात के काले में!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
११/५/१८
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