कैसी संस्कृति कैसासमाजजिसकी हम दुहाईदेते,जो चिरकालसे निरन्तर परिवर्तित होती चलीआई! फिरअबक्योंनहीं?बंद दरवाजे नयेविचार आनेकेलिएखोलदो बंदखिड़कियाद्ध हवाखानेकेलिएखोलदो ताज़गी में ना केवल चितप्रसन्नहोगा बल्कि बांसी कीबंदबू भी जाती रहेगी!उनसंस्कारोकीबेड़ियोंको तोड़ मढ़ोड़ कर रखदोअपनेनियमबनाओ!कोईभीपूर्णनहींहै नामानवनासंस्कृति!पश्चिमकीस्वछंदताव पूर्वकेसांस्कारोंकामेलकरकेसाझा
संस्कृति बनओ साझा समाज बनाओ!
मानवनैतिकके बोझ से जीवंतमृतनहोजायें अतिभोगवाद से पलायनकर इहलोकसेचलेजायेंमध्यममार्ग
कोअपनाकर आंनदवादजीवन
उद्देश्य पाओ!कुमार अर्चना,मौलिकरचना,पूर्णियाँ,बिहार २७/४/१७
Thursday 26 April 2018
"आओ साझा संस्कृति साझा समाज बनायें"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment