"अमर प्रेम समुद्र बन जाओ तुम
मैं किनारा रेत की बहा लो मुझे ! कोई गीत तुम गाओ मैं तुम्हें गुनगुनाउँ सब कुछ भूल कर तुम मुझमें मैं तुझमें खो जाउँ! ठूब जाए इन्हीं लहरों में एक हो जाने के लिए
कई जन्मों के लिए ! अमर कर दें प्रेम हम अपना क्या इन्सां ही अपना प्रेम अमर कर सकते है हम पशु-पक्षी नहीं! कुमारी अर्चना पूर्णियाँ,बिहार मौलिक रचना
१९/४/१८
Thursday 19 April 2018
"अमर प्रेम"
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