Monday 16 April 2018

"जिंदगी ताश के पत्तों का ढ़ेर है"


जिंदगी ताश के पत्तों जैसी होती
जो जीत जाता है खेल में
वो बादशाह हो जाता है
जो हार जाता है खेल में
वो गुलाम बन जाता!
ये खेल जिंदगी का है
किसी का मुकदर बन जाता
किसी का डूब जाता है!
सिकन्दर तो दोनों ही है
जो हार कर भी दिल की
बाज़ी जीत जाता
जो जीत कर भी दिल की
बाज़ी हार जाता!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१६/४/१८

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