Tuesday 17 April 2018

"अर्चना के दोहे"

"दोहे"
१.चमकै सूरज चाँद पर,
किस्मत चमकै नाहि!
कौन जनम के पाप है,
कर्महु से ना जाँहि!!
२.दोहा विधा अनुप है,
रोचक है गतिमान!
पहले लिख सुंदर उसे,
करिये उसका गान!!
३.लिखें-लिखें हम भी लिखे,
दोहा छंद अनुप!
पहले सीखे फिर लिखें,
उसके अनगिन रूप!!
४.भक्तों का सम्मान हो,
प्रभु का हो गुण -गान!
जीवन यह वरदान है,
श्रद्धा से कल्याण!!
५.नेताओं को देखिए,
कैसे करते बात!
वोट बैंक के नाम पर,
कैसे बकते जात!!
६.महत्व बड़ा प्रणाम का,
प्रेम भाव उपजाय!
अहंकार को चूर कर,
सबके मन को भाय!!
७.नफ़रत का विष है धुला,
शहद प्यार का बाँट!
क्लांत जिंदगी है पली,
सहिष्णु में सब गाँठ!!
८.अच्छे दिन भी आ सके,
बने स्वर्ग सा देश!
बुरे दिवस भी खत्म हो,
बने स्वच्छ परिवेश!!
१०.कश्मीर धरा स्वर्ग सा,
आतंकी यह शोर!
केसरिया सा ऊर्वरा,
लहू लाल ना जोड़!!
११.मैं तेरी मीरा बनूं,
तू मेरा घनश्याम!
प्रीत को ऐसो खेल हो,
पा जांऊ मैं धाम!!
१२.मनुज अर्चना चाहिए,
सच्चा हो इंसान!
सबकी सेवा जो करे,
होता वही महान!!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१७/४/१८

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