मेरा प्यार तेरे लिए..
कितना है मैं कह नहीं सकती
बस इतना जानती हूँ
दो शरीर का रूप लेकर भी
एकाकार है!
तुम मुझमें और मैं तुममें
ईश्वर और भक्त बनके!
मेरा अस्तित्व तुम बिन शुन्य है
और तुम्हारा भी!
मेरा प्यार तेरे लिए है
और सदा ही रहेगा..
बादल सा उच्चश्रृख है प्यार
सागर सा गहरा है प्यार
समुद्र सा लहराता है प्यार
झरने सा शीतला है प्यार
पवन सा उड़ता है प्यार
पर्वत सा द्धढ़ है प्यार
हिमालय सा ऊँचा है प्यार
जमीन सा समतल है प्यार
नदी सा निर्मल है प्यार
कलियों सा खिलता है प्यार
फूलों सा महकता है प्यार
पत्तों सा हरा है प्यार
पतझड़ में ना झड़ता है प्यार
हर मौसम में सुहाना है प्यार
इंद्रधनुष सा संतरंगा है प्यार!
कुुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
१९/४/१८
Thursday, 19 April 2018
"मेरा प्यार"
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