मैं हिंदी एक भाषा हूँ
एक संस्कृति हूँ
एक सभ्यता हूँ
एक धर्म हूँ!
मैं हिंदी वर्षो से धूल फांकती
घर का पुराना समान हूँ
अनेकों अनेकों भाषाओं के
नीचे दबी रहती हूँ
मेरी भगीनी उर्दू भी मुझे
छोड़ चली है मायका
संस्कृत भी पीछे छूट चली
सखी भाषाओं से कट्टी हो चली
अँग्रेजी दुश्मन बनके जब
मेरे सीने पर चढ़ बैठी!
अपने ही वतन मैं रिफ्यूजी हो चली
अंग्रेज कबके मेरे वतन छोड़ चले
पर आज भी महारानी विकिटोरिया की
शान ए शौकत चलती है
जब अँग्रेजी भाषा में भारत की
शासनसत्ता चलती है!
मेरी पड़ी धूल झाड़ कर
गंगा जल छिड़कर मुझे शुद्ध करो
वेद मंत्रों को पढ़कर मेरा श्रीगणेश करो
प्रथम भाषा का दर्जा और सम्मान दो
तभी आर्यावर्त का मान बढ़ेगा
भारतीयों का मान बढ़ेगा
विश्व में भारत महान बनेगा!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना©
05/09/18
Thursday, 26 April 2018
"मैं हिंदी"
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