बसंत में जब उपवनों में
रंग बिरंगे खिल जाते
वैसे तुम मेरे दिल में
इसी मौसम में हम मिले थे!
ट्यूलिप का फूल जैसे
मेरा वो फूल हो चटकीला भड़किला सा
मानो तुम्हारे लिबाज़ हो
लाल,बैगनी,सुनहरा सा
सबके मन मोह जाता
जैसे तुम मेरा!
ट्यलूप के फूलों को पलट दूँ
तो तेरे माथे की पगड़ी बन जाए
यह मेरे प्रियतम का मान है
प्राणों से प्रिय है ये
मैं पानी के साथ साथ अपने
पसीने से सींचती हूँ
कहीं सुख ना जाए ये
आँसूओं से डूबोती हूँ
कहीं मर ना जाए
मन में आश जलाये रखती हूँ
धूप दीप दिखा तेरी सलामती की
दुआ मांगती हूँ!
इनके फूलों में तुम्हारी
प्रतिछाया जो पाती हूँ
तन मन प्रफूलित रहता मेरा
जैसे तुम्हारे पास होने पर होता था!
कुमारी अर्चना
पुर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
३/४/१८
Tuesday, 3 April 2018
"ट्यूलिप का फूल"
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