Friday 10 November 2017

"कुछ बुझा बुझा सा है"

बुझा बुझा सा चाँद है

बुझी बुझी सी रात है

बुझी बुझी सी मैं हूँ

चाँद चाँदनी के लिए

रात दिन के लिए

मैं तुम्हारे लिए!

चाँदनी के आने से

जगमगाहट आसमान में होगी

दिन के आने से

प्रकाश जमीन पर होगी

तुम्हारे आने से

रोशन मेरा जह़ान होगा!

कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१०/११/१७

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