Sunday 12 November 2017

बना लो मुझे अपनी मधुशाला

"बना लो तुम मुझे अपनी मधुशाला" आऊँगी जब कभी तुम आवाज़ दोगे प्यार के रस की चसनी छलकाती हूँ नशा आँखो से बरसाती हुई बिना जाम पिये तुम मधहोश हो जाओगे गिर कर मेरी बाँहो में संभल जाओगे! दिन देपरिया रात सवरियाँ सजा दूँगी तुम्हारी मोहब्ब़त की महफ़िल! ध्यान रखना तुम्हारे सिवा कोई ना हो मुझे आभास भी हुआ कोई और भी समाँ बनके वही जल जाऊँगी फिर चिरागों में मुझे तुम ढूढ़ते फिरना! मैं बच्चन की मधुशाला नहीं ना ही सार्वजिक मधुशाला हो जो कोई नशेड़ी जुएड़ी जब चाहे प्यास बुझाने को चला आए मैं तो तेरी मधुशाला हूँ मेरे धनश्याम! कुमारी अर्चना पूर्णियाँ,बिहार मौलिक रचना १2/११/१७

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