Friday, 10 November 2017

"नमक की बेटी"

जाग जाओ
मेरे पुरखों की आत्माओं
नमक उठाने वाले की बेटी ने
मिट्टी ढोने वाले की बेटी ने
खेती में मजदूरी करने वाले की बेटी ने
आज कलम उठा ली है..

धन्य हो गई
उस मां की कोख
जिसको केवल अक्षर ज्ञान आती थी
उसकी बेटी ने कलम उठा ली है....

लेकर वो ज्ञान की उच्चतम शिक्षा
अब बौद्धिक वर्ग की जमात में शामिल है
स्वर्णो की बपौती थी जो कलम कभी
आज आमजन की कलम हो गई है
जाग जाओ मेरे पुरखों की आत्माओं
तेरी बेटी ने कलम उठा ली है....

भर दो आशीष से तुम मुझको
रचना के साथ मैं भी अमर हो जाऊं 

और मेरे पुरखों का नाम भी

आज तेरी कलम उठा ली है।

कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मैलिक रचना
१०/११/१७

No comments:

Post a Comment