Wednesday 15 November 2017

"घर घर शौचालय हो जाये तो"

"घर घर शौचालय हो जाये तो"
जॉनी ने कहा अपने मालिक से
मैं टहलने के लिए जा रहा हूँ
इधर उधर चलते चलते
सेर भी हो जाएगी
मैं हलका भी हो जाऊँगा!
तुम भी तो पहले मेरे जैसे
घर से कोसों दूर दूर
जाया करते थे टट्टी करने के लिए!
सेर कर अपने स्वास्थ के साथ
दोस्तों से गप्पे मारा कर
मन का बौझ भी उतारते थे
पर अब तुम दो कमरे के एक कोने में
पड़े पड़े रहते हो वही खाते वही पीते हो
वही बगल बने शौचालय में
टट्टी लगने पे जाते हो!
रात दिन सोचते सोचते तनाव से
डिप्रेशन में चले जाते हो
मोटे और भद्दे तक बन जाते हो!
तुम लोग तो शहर की सफाई का
बड़ा ध्यान रखते हो ना
साथ अपने स्वास्थ का भी
वही हजारों करोड़ों टन कुड़ा कचरा फैला कर सलम क्षेत्र भी तुमही बसाते हो
जहाँ इन्सान जानवरों जैसे रहते है!
नदी नालों को प्लास्टिक से
बंद कर देते हो तुम
उन्हें फिर से कोई दुसरा इन्सान
पेट की भूख मिटाने के लिए
अपने नंगे हाथों से साफ करता है!
तुम शहर वाले खुद को सभ्य कहते हो
दूसरे इन्सानों को इन्सान नहीं मशीन समझ उपयोग करते हो!
मानव होकर भी अमानवीय है व्यवहार तुम्हारा!
ह्रदय रखकर भी ह्रदयविहीन क्यों हो तुम?
इससे बढ़िया तो गाँव है
जहाँ बातचीत कर मन लगाने वाले
दो चार लोंग मिल ही जाते है
चारों ओर हरियाली ही हरियाली
और जंगल व परती जमीन
शौचालय बन जाती है!
पर अब गाँव में भी शौचालय
सरकारी योजना के तहत
धीरे धीरे बनने लगे है
फिर क्या गाँव भी शहरों जैसे हो जाएगें
फिर मैं कहाँ हलका होने जाऊँगा
फिलहाल मैं टहलने जा रहा हूँ
क्या तुम चलोगें मेरे संग टट्टी के लिए... टहलने से स्वास्थ अच्छा रहता है हाँ जॉनी,रूको मैं भी चलता हूँ प्रकृति की ओर! कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
16/11/17

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