Wednesday 15 November 2017

"मैं अधूरी ही तो हूँ"


मैं अधूरी ही तो हूँ
उस आघी भरी ग्लास जैसी!
अधुरा अधूरा ही तो सब कुछ मेरा
तुम बिन स्त्रीत्व अपूर्ण है
मेरा बिन पुरूष तुम्हारी संगनी बने
बिन मातृत्व सुख के!
और आज भी है मेरी रात अधूरी है
दिन उदासी है
साँझ प्यासी है
सुबह आशाई है!
मैं इतजार में हूँ
बिस्तर भी तकिया भी
दिवारें भी खिड़िकियाँ
और दरवाजे भी
सब के सब खुले है
मेरी आँखे भी
बस एक तुम्हारे मेरे होने के!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना 16/11/17

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