"तुम बिन अस्तित्व में"
मैं वहाँ तक आगे जाना चाहती हूँ
जहाँ से तुम मुझसे पीछे ना छूटो!
मैं झट से तुम्हारा हाथ थाम सकूँ
आवश्यकता पड़ने पे!
मैं कुछ तो हूँ बस तुम ये समझो
तुम्हारे जाने के बाद भी
अस्तित्वहिन नहीं हुई मैं
अपने अस्तत्वि में हूँ
अपने स्त्रोयोचित गुणों को संभाले!
स्वाभिमान अब भी शेष है मेरा
इसलिए तुम्हारे पीछे पीछे भागने के बजाय
मैंने खुद को स्वंत्रत पहचान बनाई
ना तुम्हें हराना चाहती
ना तुम्हें जीतना चाहती
बस बराबरी चाहती हूँ
परस्पर संबंधों की!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना 14/11/17
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