Saturday 11 November 2017

"आम आदमी"

"आम आदमी" आता जाता रोता हँसता छिंकता हाफ़ता रेंगता दौड़ता खाता पीता पादता जननता पालता तरस्ता सिसकता डूबता उतरता मिटता जाता फिर भी सपनों को हक्कीत ना कर पाता झूठे जिंदगी के छलावे में ही जीता एक दिन सोचता सोचता मर जाता! कुमारी अर्चना पूर्णियाँ,बिहार मौलिक रचना 12/11/17

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