लौट आओ तुम
मेरे प्रियवर तुम्हारे
जुदाई के वियोग में
मैं मुरझा सी गई हूँ
जैसे की पुष्ष!
मैं सुख सी गई हूँ
जैसे की लकड़ी!
मैं पाले सी हो गई हूँ
जैसे की पौधा!
मैं खखड़ी सी हो गई हूँ
जैसे की फसल!
मैं उजड़ सी गई हूँ
जैसे की गाँव!
मैं बंजर सी हो गई हूँ
जैसे की धरती!
मैं कहीं अवशेष ना हो जाऊँ
जैसे की जीवाश्म!
लौट लाओ तुम फिर से
"अर्चना" में जान बनकर!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
20/11/17
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