Monday 13 November 2017

"पवित्र हूँ मैं"

"पवित्र हूँ मैं"
हाँ मैं आज भी कुँवारी हूँ
पुरूष के साथ बिन संभोग के
मेरी कुँवारी की झिल्ली नहीं टूटी
जो मेरे पवित्रता की पहचान है!
परन्तु ये तो मेरे खेलने,खुदने,गिरने या
चोटिल होने से भी टूट सकती है!
फिर क्या मैं कुँवारी नहीं रही
चरित्रहीन हो गई अपवित्र हो गई!
मैंने बनाया होगा किसी परपुरूष से संबंध
अब क्या मेरा कौमर्य परिक्षण होगा
देना होगी मुझे सीता की तरह अग्नी परीक्षा
पर विज्ञान केवल संभोग को
आधार नहींमानता
झिल्ली टूटने का इसके
अन्य कारणों को पुष्टी करता
परन्तु समाज को क्या जबाब दूँगी
अपने पति परमेश्वर के आँखों में
आँखें कैसे मिलापाउँगी
क्या गिर जाउँगी सदा उसकी नजरों से जो संभोग को ही कौमर्य का आधार मानता है!
जो अपराध मैंने नहीं किया
उसके लिए मैं कैसे दोषी बनूँ
मेरे लिए तो इतनी हायतौबा
समाज सदियों से उठाता आ रहा है
पर पुरूषों का कौमर्य परीक्षण
कोई क्यों नहीं करवाता!
वो अपने चरित्र की कसौटी पर
कितना खरा उतरता
क्या वो वर्जीयन है
जो मेरे कुँवारी पर
सवाल पे सवाल दागता है
पर वो है कौन?
मेरे अस्तिव पर प्रश्नचिह्न लगानेवाले
जब एक पुरूष कई स्त्री से
संभोग कर भी पवित्र है तो
मैं स्त्री भी शादी के पहले शादी के बाद
प्रेमी से संबंध बनाकर भी
परपुरूष से विवाह के बाद
संबंध बनाकर भी मैं पवित्र हूँ!
संभोग के पहले भी और बाद भी!
मैं भी मानव हूँ
मेरी भूखों में शाररिक भूख भी एक भूख है
चाहे वो बिन बंधन के प्राप्त हो या
बंधन में या बंधन के बाद भी किसी से
मुझे भी पूर्ण अधिकार मेरे शरीर पे
जैसे कि एक पुरूष को है!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
14/11/17

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