मैं तस्वीर हूँ
मैं नहीं बोलती
मेरी तस्वीर!
मैं नहीं हँसती
मेरा रंग!
मैं नहीं रूलाती
मुझ पर उकेरी
आरी तिरछी रेखाएं!
मैं काया नहीं
चित्रकार की माया हूँ
जो मुझमें विविध रंगों को
भरकर मेरे सफेद पन्नें को
रंगीन बना मुझे
तस्वीर में बदल देता
और मैं जीती जागती सी
तस्वीर बन जाती हूँ!
मैं तस्वीर हूँ
टंकी तो खुंटी सी
किसी किल पर
दिवारों पर
रेखों पर रहती हूँ
पर जगह लोगों के
दिल में बना लेती हूँ!
नकली होकर भी
असली बन जाती हूँ
जब लोगों के जेहन में
मेरा वजूद रह जाता
खुबसूरत यादों में
मोहब्ब़त बनकर!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
21/11/17
Tuesday 21 November 2017
"मैं तस्वीर हूँ"
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