Sunday 19 November 2017

"मैं पुरूष बनना चाहती हूँ"

"पुरूष दिवस"
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मैं पुरष बनना चाहती हूँ
जो सृष्टी के सृजन के बाद
जीवों में मुख्य कर्ता बन जाता है
वो एक साथ क्रिया व कर्म
दोनों की भूमिका निभाता है
एक स्वंय को संतुष्ट
द्विजा स्त्री की तृप्ती करता!
मैं पुरूष बनना चाहती हूँ
जो इतिहास बनाता और इतिहास लिखकर भविष्यपीढ़ी को संरक्षित करता है!
प्रकृति और स्त्री दोनों उसपर आश्रित है
उसके कुशाग्र बुद्धि और बाहुबल से
इसलिए स्त्री और प्रकृति दोनों ही
सदा उसके ऋणि रहेगें!
मैं पुरूष बनना चाहती हूँ
जो घर प्रधान मुखिया बन
परिवार को संयुक्त रखता है
वो संततिकर्ता ही नहीं केवल
उसका पोषणकर्ता भी है
पीढ़ी दर पीढ़ी को पैतृक वंशावली की
परम्परा को आगे बढ़ाता!
जो नित प्रगतिशील विचारों से
समाज और देश को आगे बढ़ाता है
जो विज्ञान और प्रोधौगिकी की नयी तकनीकियों को विकसित करता है
मैं पुरूष बनना चाहती हूँ!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१९/११/१७

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