Friday 17 November 2017

"हिसाब"

तेरे किये उन झूठे वादों को
मैं बार बार याद करती हूँ
ताकि वक्त बे वक्त तुझे भी
याद दिला सकूँ!
तेरे धोखे को मैं आज तलक ना भूली
न तुझे ही भूलने दूँगी
इसलिए तुझे भी धोखे देने के
मैं मौके तलाशती हूँ!
मेरे आँखो से बहे आश्रुओं की
हिसाब वसूली तब तक ना होगी
जब तक तेरे आँखो से भी
आश्रुओं की धारा न बहेगी!
तेरे दिये दिल के जख्म़ तब तक ना भरेगें
जब तक तेरे भी जख्म़ ना हरे हो जाएगे
मेरा दर्द से रिश्ता बन पड़ा है
अब तो तुमको दर्द में देखकर ही
ये सुकून पाएगे!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
18/11/17

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