दिल चाहता है मेरा
मिले सुकुन के दो पल
फिर आ कर दें जाओ तुम
मुझे वो हसीन पल!
जिंदगी है दो पल की
पल पल में ये गुजर रही
सँवार दो मेरे कुछ पल
तन्हाईयों में भी
याद आ जाए वो पल!
दिल चाहता है मेरा
मिले प्यार के दो पल
कभी ना बीते वो पल
जब भी आँखें बंद करूँ
दृश्यबिंब बन पटल पे
उभर आए वो पल!
दिल चाहता है मेरा
मिले आराम के वो पल
बाँहों में भरकर रहूँ
तुम संग कुछ पल
मेरे जूल्फों से खेलों
तुम कुछ पल!
दिल चाहता है मेरा
जी भर कर फिर तुम्हें
वही प्यार करूँ जो
पहली बार देख किया था
आँखों से दिल तक
तुम्हें शीशे की तरह उतारा था
लौटकर आए वो पल!
मुठ्ठी में कसकर बंद कर लूँ
वो बेशकिमती पल
रेत बनके उड़
ना जाए वो पल!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
२२/११/१७
Wednesday, 22 November 2017
"दिल चाहता है मेरा"
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