Wednesday 15 November 2017

"सुहाग रात"

"सुहाग रात"
कहीं सात वचन और अग्नी के फेरा
तो कहीं क़बूल है की सहमति
कहीं बाईबल के वादे
गुरूग्रंथ साहिब के वचन से
बंध जाते वैवाहिक जोड़े!
फूलों के सजा कोमल बिछौना होगा
रात अंघेरी फिर भी
चाँदनी का इंतजार करता चाँद होगा
खड़कियाँ से आती ताज़ी हवा तो होगी पर विचारों का दरवाजा बंद पड़ा होगा
कमरे में पलकें बिछायें दुल्हन होगी
चुटकी भर सिंदूर लगाये
नज़र ना लगनेवाला गले में
परपुरूष रूपी कालासूत्र पहने
हाथों में भरी लाल चुड़ियाँ होगी
पाँव के पोरों से बंधे बिछूआ व पायल से झनकते धूधँरू होगें
सहरे लगायें जब दुल्हा आएगा
घँघट मेें शरमाई दुल्हन होगी!
शादी दो आत्माओं का नहीं
दो देहों का मिलन होगा
पर एक दो मुलाकातों में
कितना जान सकेगें वो
जो गऊँ समझ दूसरे के खूटे से
बाबुल ने बेटी बांध दी
कैसे वो अपनी प्रवाहित भावनाओं को
अपने अंग के साथ सौंपेगी!
शादी के बाद वैवाहिक जीवन की मार्धुय बेला की वो पहली रात है
पत्नीधर्म तो निभाने ही होगा
निर्वस्त्र करवाना होगा
खुदको छूने देना होगा
उसके हाथों से अपने कठोर नितंबो को
साँसो में साँस भरनी होगी
मसल देने होगा अपने कोमल बदन को
जी भर के तन व मन को
उसकी यौन इच्छा को संतुष्ट
और स्वंय भी तुप्त होना होगा
ना भी हुई तो ऊपरी मन से
हाँ तो कहना ही होगा
ना कहती तो सतीत्व की अग्नीपरीक्षा देनी होगी शक की सूई सीधी सीधी मेरी ओर होगी सारी की सारी उठती अँगूलियाँ चिरेंगी
मेरे अतित को
प्रश्नचिह्न लगा देंगी मेरे वर्तमान व भविष्य को मेरे स्त्रीत्व पर सवाल जबाब की झड़ियों के साथ!

पर सहमति या असहमति से
संबंध जब बना लेती हूँ
सफेद बिस्तर पर जब खूऩ से छिटें
जब यहाँ वहाँ गिरती है
तो मेरा चरित्र पाक़ हो जाता
जिससे केवल सिलवटे रह जाती है
मन के ऊपर काले धब्बे बन जाते
मेरे चरित्रहीनता के!
पुरूष में अपने पुरूषार्थ धर्म से बंधा है
काम क्रिया की पहले उसे ही करनी है पृितवंशावली संवृद्धी का दायित्व भार है
स्वंय की संभोग की इच्छापूर्ति भी!
क्या संबंध बनाना ही गृहस्थधर्म का आघार है जो बलि का बकरा परम्पराबद्ध होकर दोनो बनते रहेगें
क्या संभोगपूर्ति करना व संतान को जनना ही स्त्री जीवन का चरम उदेश्य है!
स्त्री के ह्रदय की भावनायें शून्य है
जो पहले प्यार,स्नेह व विश्वास चाहती है
फिर संबंध का भार चाहती
क्या कोई ऐसा पुरूष नहीं मिलेगा
जो पढ़ सके मेरा मन के भावों को
दिल से देह की वैवाहिक यात्रा शुरू कर सके!
या कोई फर्क ना होगा
मुझमें और उस वैश्या में
दोनो बंद कमरे में संबंध बनाते
पर मेरे साथ एक पुरूष और
उसके साथ कई पुरूष
उसे बहुत देकर सोया जाता
मेरे साथ सोने के लिए
बहुत कुछ दिया जाता!                                               कुमारीअर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१५/११/१७

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