Wednesday 22 November 2017

"डहेलिया"

डोल जाये मन का भँवर
जिस गोल फूल को देख
के वो डहेलिया है!
बिन खुशबू के भी
दिल लगाने को आये
वो डहेलिया है!
रंग बिरेगें रूप में
बागों की शोभा में
चार चाँद लगाए
वो डहेलिया है!
तोड़ने को जी ललचाये
फिर भी तोड़ा ना जाये
वो डहेलिया है!
ठंड में सूरज की
रोशनी में सूर्यमुखी सा
खिल खिल जाये
वो डहेलिया है!
जब भी मैं देखूँ
जिधर से देखूँ
मंद मंद मुस्काये
मेरा भी चेहरा भी
डहेलिया सा खिल जाए
वो डहेलिया है!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
२२/११/१७

No comments:

Post a Comment