Thursday 16 November 2017

"दूिखण्डिता"

मैं स्त्री खंडित हूँ
दो टूटे भागों में
मैं और तुम में!
वैसे ही मेरे विचार खंडित है
एक मन में,एक अन्तर्मन में!
वैसे ही मेरा प्रेम भी खंडित है
पति और बच्चों में!
वैसे मेरा विश्वास भी खंडित है
ईश्वर और तुम में!
वैसे मेरा अंग भी खंडित है
दायाँ और बायाँ में!
वैसे मेरा गुण भी खंडित है
पुरूष और स्त्री में!
वैसे मेरी भावनायें भी खंडित है
मोहब्ब़त और ममता में!
वैसे मेरा अस्तित्व भी खंडित है
स्वं और पर तुम में!
मैं स्त्री टूटे पडाड़ के उस पत्थर जैसी हूँ
जो कदमों तले रह जाती!
मैं खंडित मूर्ति जैसी हूँ
जो ना मंदिर मैं रहने योग्य रहती
न ही पूजने योग्य ही!
क्योंकि मैं स्त्री
अर्द्धनारीश्वर स्वरूपा हूँ
तुम बिन अपूर्णा हूँ!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१६/११/१७

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