Thursday, 16 November 2017

"गुदगुदी"

क्या ये वही चुम्बन था
जो तुमने मुझे बाँहों में भरके दिया था
उसकी गर्माहट आज भी
मेरी साँसों में है.. .,
और मेरी चलती धड़कनों को रोक देती
कुछ पल के लिए या
कोई और था!
चुपके से तुमने मेरे माथे पर
अपनी एक प्रेम निशानी दी थी
प्यार की झपकी थी वो!
मुझमें आज भी रोमांस की
गुदगुदी का एहसास भरती है
तुमसे वही चुम्बन लेने की
पर तुम पास नहीं!
हो सके तो तुम वापस आओ
फिर से वही रात लाओ!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना©
१७/११/१७

No comments:

Post a Comment