Thursday 16 November 2017

"मैं सूरज हूँ"

मैं सूरज हूँ!
मैं उगता हूँ
मैं ही डूबता हूँ
मैं जागता हूँ
मैं ही सोता हूँ
मैं खिलता हूँ
मैं ही मुरझाता हूँ
मैं हँसता हूँ
मैं ही रोता हूँ
मैं सिकुड़ता हूँ
मैं ही फैलता हूँ!
जाने क्या करता हूँ
दुनिया को अपनी किरणें देने के लिए
अपने अस्तित्व का लोप कर देता हूँ
कभी चन्द्र से अच्छादित होता हूँ
तो कभी राहू का कोप सहता हूँ
कभी बादलों के ओट तो
कभी कोहरे का कहर सहता हूँ!
मैं सूरज हूँ
नित उगना और डूबना कर्म है मेरा
बिना किसी से बैर किये
रोशनी बाटना कर्त्तव्य है मेरा
कीट से जीव जंतु तक
पेड़ पौधे से लेकर फूलों तक
प्रकाश बनके जीवन देता हूँ
मैं सूरज हूँ!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मैलिक रचना
१७/११/१७

No comments:

Post a Comment