Monday 27 November 2017

"प्यारी यादों का कोष"

मुझे प्यार चाहिए था
उसे दौलत
उसे खुशियाँ मिली
मुझे ग़म
उसे सब मिला
मुझे कम मिला
वो बिक गया मंडी में
मेरा मुफ्त का भी खरीदार न मिला
उसे शोहरत मिली
मुझे बदनामी के सिवा कुछ नहीं
वो डबल हो गया
मैं सिंगल रह गई
उसकी गाड़ी एक्सप्रेस हो गई
मेरी मालगाड़ी बन गई
उसके दोनों हाथों में लड्डू है
मेरी झोली खाली रह गई
वो बड़ा आदमी बन गया
मैं बेकार आदमी बन गई
वो हँस रहा मुझ पर
मैं रो रही उस पर
उसके पास सब कुछ है
फिर भी प्यार का कंगाल है
मेरे पास कुछ नहीं फिर भी
उसकी प्यारी यादों का कोष है!
कुमारी अर्चना
मौलिक रचना
२७/११/१७

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