और कितनी सदी तक
और ठोता रहेगें कुप्रथाओं को
और कितना पसीना के साथ
जलता रहेगा जमीर!
और कितनी बार जिंदा होकर भी
रोज रोज मरता रहेगा
गरीब बंद करो अमानुषी प्रथा को
बंगाल में हाथों से लोगों को
रिक्सा पर खिंचने का व्यापार!
असल भारत की आजादी नहीं
ब्रिट्रिश भारत की गुलामी है
जैसे अंग्रेजी को राजकाज की
भाषा बनाना और हिंदी को
हासिये पे आज भी रखना
स्वंत्रता के असली मायने में
अजादी तभी समझी जाएगी
जब दबी कुचली जनता इससे
सदा सदा के लिए मुक्त हो जाएगी
रोटी,कपड़ा और मकान
बुनियादी सुविधा मिल पाएगी
भारत भाग्य विधाता के गीत एक साथ
देश की जानता गाएगी!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
२२/११ १७
Tuesday, 21 November 2017
"और कितनी सदी"
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